देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर भूतभावन भगवान् वासुदेव ने सम्पूर्ण देवताओं से कहा ' देवगण ! तुम लोग अपने प्रस्ताव के अनुसार मेरी बात सुनो, नन्दी को आगे करके तुम सभी शीघ्रतापूर्वक वानर-शरीर में अवतार लो ।
मैं माया से अपने स्वरूप को छिपाये हुए मनुष्य रूप होकर अयोध्या में राजा दशरथ के घर प्रकट होऊँगा ।
तुम्हारे कार्य की सिद्धि के लिये मेरे साथ ब्रह्मविद्या भी अवतार लेंगी । राजा जनक के घर साक्षात् ब्रह्मविद्या ही सीता रूप में प्रकट होंगी ।
रावण भगवान् शिव का भक्त है । वह सदा साक्षात् शिव के ध्यान में तत्पर रहता है । उसमें बड़ी भारी तपस्या का भी बल है । जब ब्रह्मविद्या रूप सौता को रावण बलपूर्वक प्राप्त करना चाहेगा , उस समय वह दोनों स्थितियों से तत्काल भ्रष्ट हो जायगा । सीता के अन्वेषण में तत्पर होकर वह न तो तपस्वी रह जायगा और न भक्त ही ।
जो अपने को न दी हुई ब्रह्मविद्या का बलपूर्वक सेवन करना चाहता है , वह पुरुष धर्म से परास्त होकर सदा सुगमतापूर्वक जीत लेने योग्य हो जाता है ।
परम मंगलमय भगवान् विष्णु इस प्रकार के वचनों द्वारा सम्पूर्ण देवताओं को आश्वासन देकर अन्तर्धान हो गये । तदनन्तर सब देवता अवतार धारण करने लगे ।
इन्द्र के अंश से वाली उत्पन्न हुए , सुग्रीव सूर्य के पुत्र थे । जाम्बवान् ब्रह्माजी के अंशसे प्रकट हुए थे । शिलाद के पुत्र नन्दी जो भगवान् शिव के अनुचर तथा ग्यारहवें रुद्र थे , महाकपि हनुमान् हुए । वे अमित तेजस्वी भगवान् विष्णु की सहायता करने के लिये ही अवतीर्ण हुए थे ।
अन्यान्य श्रेष्ठ देवता मैन्द आदि कपियों के रूप में उत्पन्न हुए थे । इसी तरह सभी देवता किसी - न - किसी कपि के रूपमें प्रकट हुए ।
साक्षात् भगवान् विष्णु ही माता कौसल्या का आनन्द बढ़ाने वाले श्री राम हुए ।
सम्पूर्ण विश्व उनके स्वरूप में रमण करता है , इसलिये विद्वान् पुरुष उनको ' राम ' कहते हैं । भगवान् विष्णु के प्रति भक्ति और तपस्या से युक्त शेषनाग भी इस पृथ्वी पर लक्ष्मण के रूप में अवतीर्ण हुए ।
श्रीविष्ण के भुजदण्डों से भी दो प्रतापी वीर प्रकट हुए , जो तीनों लोकों में भरत - शत्रघ्न के नामसे विख्यात हए ।
स्कन्दा पुराण
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