बड़ी अध्भुत रचना है मनुष्य भगवन के द्वारा, सोचिये रोटी का एक निवाला पेट तक पहुंचाने का भगवान ने क्या खूब रचना की है,
अगर गर्म है तो हाथ बता देते हैं,*
सख्त है तो दांत बता देते हैं,*
कड़वा या तीखा है तो जुबान बता देती है,*
बासी है तो नाक बता देती है,*
बस मेहनत का है या बेईमानी का,इसका न्याय हमे करना है, और इसी न्याय को करने और समझने में हमे जीवन के जीवन लग जाते है,
हम भूल जाते है के भगवन हमे ऊपर से नहीं अंदर से देख रहा है और हम कही भी अकेले नहीं है, सब का खाता लिखा जा रहा है जिस दिन आप ने जन्म लिया था।
हम मनुष्य ने अपने को सही सिद्ध करने की कला ज्ञात कर ली है और हम हमेशा अपने कर्मो को उचित साबित करने में लगे रहते है, पर अंतरात्मा को हमेशा इस बात की अनुभूति रहती है की हमने क्या करा और क्या नहीं, फिर भी हम एक छलावा में रहते है और सोचते रहते है के सब ठीके है जो भी मैंने करा या सोचा,
एक बार फिर सोचिये
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