इसके दो मुख्या कारण है , एक तो पहले के समय बिजली नहीं थी और नाखून कतरनी एक तेज धार उपकरण होता था, तो डर यह था की कही अंधेरे में ऊँगली न कट जाये और हम अपने को जख्मी कर ले
दूसरा,सनातन संस्कार के माने तो सूर्यास्त के बाद किसी भी किसी भी क्रिया या सृजन का अंत नहीं किया जाता, उसको यथावत चलने देना चाहिए , सूर्य उदय एक नया दिन नया सृजन, नाखून काट कर एक नयी शुरुआत होती है जीवन की,
हमारे सनातन संस्कार बहुत सुन्दर है, क्योंकि इ चिरकाल से लेकर अभी तक और आगे तक हर काल में वैध, बस आवश्य्कता है उनको समझने और समझाने की
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
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