हमारी आत्मा परमात्मा का अंश है और हमारे पलायन के बाद यह आत्मा परममात्मा में विलीन हो जाती है, जन्म से लेकर मृत्यु तक का जो पथ है बस एहि जीवन है, इस जीवन को हम कैसे जीते है यह हमारे ऊपर निर्भर करता है।
हम रोते हुआ आते है और रुलाते हुआ जाते है, इस दो बिन्दुओ के मध्य में जो रास्ता हम तय करते है बस वह ही हमारा कर्म है, अब हम चाहिए उसे आजीवन अपने लिए ग्रहण कर ले और में में करते रहे या यह समझे के यह जीवन एक उपहार है हमें भगवन के द्वारा ८४ लाख योनियों के बाद, मनुष्य का जन्म देना, इस उपहार को हम दूसरों में बाट कर खुशिया दे या यह उपहार से हम अकेले ही खुश होते रहे, यह हमे सोचना है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार 'राम नाम सत्य है' एक बीज अक्षर है, राम अर्थात सत्य क्योकि भगवन राम सदैव सत्य के रहा पर चले और मर्यादा में रहे इसलिए उन्हे मर्यादा पुषोत्तम राम कहा गया।,
जब जब हम अपनी मर्यादा को पार करते है तब तब कोई न कोई विपदा आती है या हमारे अंदर कोई रावण जन्मा लेता है ।
अंतिम यात्रा पर हम राम नाम सत्य का जाप करते है क्योकि हम उस जीव और परिजनों को एहसास दिलाते है के जीवन नश्वर है और राम नाम एवंग मृत्यु हे परम सत्य है, जिस छलावे से हम आजीवन भागते रहते है।,
राम नाम सत्य है सुनने से हमे ये अहसास होता है कि यह संसार व्यर्थ है अगर हम अपनी मर्यादाओ में नहीं रहेंगे।,
सत्य का ज्ञात होना के जीव को मुक्ति मिल गई है. आत्मा संसार चक्र से आजाद हो गई है, में, मेरा, तेरा, लोभ, द्वेष प्रेम, मोह सब इस शरीर से जुड़ा है, इस शरीर के परे कुछ नहीं है, सब शुन्य है।
न हम जान पाए ना कोई आकर बता पाया के क्या हुआ, जो शास्त्रों में लिखा है वही सत्य है जैसे के गरुण पुराण में।
राम का नाम यह ज्ञात करवाता है, की जब किसी की मृत्यु होती है ,तब हम अपने साथ कुछ नहीं ले जाते ,व्यक्ति अकेला आता है ,और अकेला ही जाता है ,अब इस मृत शरीर का कोई अर्थ नहीं है ,और केवल एक राम का नाम ही है जो सत्य है। इस राम नाम के जप ने से यह अहसास होता है ,की वह व्यक्ति इस संसार से चला गया है।
जिंदगी भर इंसान पैसे, शानों-शौकत के चक्कर में इधर से उधर भागता रहता है, छल-कपट का सहारा लेता है, लेकिन मृत्यु के बाद उसे सब कुछ संसार में ही छोड़कर पलायन करके जाना पड़ता है। साथ केवल अच्छे कर्म ही जाता है जिसके आधार पर उसे नया जन्म मिलता है।
'राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है" अर्थात जिंदगी में और जिंदगी के बाद भी केवल राम नाम ही सत्य है बाकी सब व्यर्थ है।
सत्य भगवान राम का नाम है'। यहां राम ब्रम्हात्म यानी की सर्वोच्च शक्ति की अभिव्यक्ति करने के लिए निकलता है। इस दौरान सांस विहानी यानी कि मृत शरीर का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। आत्मा सब कुछ छोड़कर भगवान के पास चली जाती है। यही परम सत्य है।
जो जैसा कर्म करता है वह उसे भोगना पड़ता है ,अर्थात उसका अगला जन्म उसी के आधार पर निश्चित किया जाता है। पर इस संसार रुपी माया को कोई नहीं समज पाता, इसलिए हमे स्वार्थ, निस्वार्थ को छोड़कर परमार्थ करना चाहिए अर्थात कर्म करो, पर इस विचार से नहीं के हमे कुछ वापस मिलेगा पर इस उद्देश्य से के जो भी हम कर रहे वह परम आत्मा के लिए कर रहे है, आभार प्रकट कर रहे के उन्होने हमे यह मनुष्य जीवन दिया, रोटी, कपडा, मकान और स्वास्थ दिया ।
धर्मराज युधिष्ठिर सबसे पहले बता दें, इस बात का उल्लेख महाभारत काल में पांडवों के सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के जरिए किया था।
'अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्।
शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।'
यानि कि,मृतक को श्मशान ले जाते समय सभी 'राम नाम सत्य है' कहते हैं परंतु शवदाह करने के बाद घर लौटते ही सभी इस राम नाम को भूलकर फिर से माया मोह में लिप्त हो जाते हैं। लोग मृतक के पैसे, घर इत्यादि के बंटवारे को लेकर चिन्तित हो जाते हैं। इसी सम्पत्ति को लेकर वे आपस में लड़ने-भिड़ने लगते हैं।
धर्मराज युधिष्ठिर आगे कहते हैं कि, "नित्य ही प्राणी मरते हैं, लेकिन अन्त में परिजन सम्पत्ति को ही चाहते हैं इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य होगा?"
कोशिश करे के आपके द्वारा हमेशा भले शब्द, भले कार्य और सोच भली हो, यह कर्म मनुष्य के जीवन का सबसे कठिन और महत्वपूर्ण कर्म है किसी अपने अंदर ग्रहण करने में हमे जीवन के जीवन लग जाते है
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
ॐ नमः शिवाये
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