गुरु एक ऐसा मनुष्य होना चाहिए जिसने वास्तव में ईश्वरीय सत्य को जान लिया हो, जिसने स्वयं को आत्मा के रूप में माना हो। केवल वाक् शक्ति वाला गुरु नहीं हो सकता।
गुरु में द्वेष, अहंकार और लोभ जैसे मानवीय इन्द्रियों पर सदैव नियंत्रण रहता है, वह सिर्फ कल्याण करते है और हमेशा वाणी में सबका भला श्रवण करवाते है, उनके शब्द उमके मंत्र होते है।
ज्ञान अर्जन करना कोई बड़ी बात नहीं है, वेद-पुराण पढ़ना बड़ा आसान है, जब तक आप अपने अंदर की आत्मा को नहीं पहचाने तब तक समस्त ज्ञान व्यर्थ है।
गुरु अपनी आत्मा को परमात्मा से एकाकी होते है, वह ही मनुष्य वास्तव में गुरु है,
गुरु अर्थात बिना गुरुर के
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
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