रिग वेद के अनुसार यज्ञ परमात्मा है । यज्ञ में देव ( परमात्मा ) की सङ्कति एवं आराधना होती है । देवपूजन का अर्थ द्रव्य , समय एवं स्वयं ( पूजक की आत्मा ) का दान ( उपयोग ) होता है ।
इसीलिए पुराणों में ' यज्ञ ' भगवान् का एक अवतार भी स्वीकार किया गया है ।
अत : ' यज्ञ ' का अर्थ परमात्मा है ।
परमात्मा का ही विस्तार ब्रह्माण्ड है । सम्पूर्ण यज्ञ साधन परमात्मा में ही कल्पित हैं । यही " यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवाः " अथवा " ब्रह्मार्पणं " " ब्रह्महविः " का अर्थ है । परमात्मा की आराधना ही मनुष्य को इष्ट है ।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है
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