सत्संग अर्थात सत तत्वो का संग, सज्जनो का संग, सदगुणो का संग, सदग्रन्थों का संग, सद विचारों का संग,सत् कर्मो का संग, सदपठन का संग, सदचिंतन का संग, सदश्रवण का संग, ऐसे अनेक सत तत्व है, प्रत्येक सततत्व साक्षात श्री कृष्ण का स्वरुप है।
जिसका संग करने से काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्संर जैसे दूर्गुणों से छुटकारा मीले, जिसका संग करने से अहंता ममता छुट जाये तथा दीनता प्राप्त हो, जिसका संग करने से गौरव पूर्ण वैष्णवी जीवन जीने मे सफलता मीले, जिसका संग स्वधर्म का आचरण करने की प्रेरणा दे।। तथा जिसका संग करने से, प्रभु के स्वरुप मे प्रेम जाग्रत हो, उसका संग ही सत्संग है।
सक्षिप्त मे कहा जाय तो जो संग जीवात्मा को परमात्मा की और ले जाय उसका नाम "सत्संग" हैं।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है
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