प्रदोष व्रत हर मास में दो बार आते हैं और यह हर मास की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है, त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं।। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है. यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है.
प्रदोष व्रत फल : हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। सोमवार का प्रदोष, मंगलवार को आने वाला प्रदोष और अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व और लाभ अलग अलग है।
रविवार : जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं।आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है,
सोमवार : सोमवार को त्रयोदशी तिथि आने पर इसे सोम प्रदोष कहते हैं।व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है,
मंगलवार : मंगलवार को आने वाले इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है,
बुधवार : इस दिन को आने वाले प्रदोष को सौम्यवारा प्रदोष भी कहा जाता है,उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है,
गुरुवार : इस गुरुवारा प्रदोष कहते हैं।इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है,
शुक्रवार : इसे भ्रुगुवारा प्रदोष कहा जाता है।सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है,
शनिवार : शनि प्रदोष से पुत्र की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि यदि आप भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो यह व्रत सर्वथा उपयुक्त है।
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