"भगवान क्या है"--यह जानना नहीं बनता, क्योंकि भगवान मनुष्य की ज्ञान शक्ति के बाहर हैं।
भगवान पर तो विश्वास किया जा सकता है,उनको माना जा सकता है,उनकी महिमा और प्रभाव का दर्शन कर, सुनकर समझकर और मानकर उन पर निर्भर हुआ जा सकता है। ऐसा करने पर साधक कृतकृत्य हो सकता है,इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है।
भगवान तो अकारण ही कृपा करनेवाले है, यह ध्रुव सत्य है,तभी तो आप और हम सभी लोग जो कि उनको नहीं मानते वे भी और जो उनको मानते है वे भी उनकी बनाई हुई हवा,अग्नि, जल,प्रकाश आदि का बिना ही किसी प्रकार का मूल्य दिए उपभोग कर पातें है।यदि वे अकारण कृपालु नहीं होते तो क्या इन पर रोक नहीं लगा देते, क्या टेक्स नहीं बाँध देते? पर वे ऐसा नहीं करते,क्योंकि वे उदार चित हैं।
जो यह बात मान लेता है कि भगवान अकारण ही कृपालु है,वह तो उन्हीं का हो कर रहता है,वह फिर उनको भूल ही कैसे सकता है?
कभी सोचा है आपने,'भगवान' को भगवान ही क्यों कहते हैं..?
क्योंकि भगवान शब्द के पांच अक्षरों में पंच तत्व समाहित हैं
भ-भूमी, ग-गगन, व-वायू, आ-आग, न-नीर
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
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