आरती के अंत में हम सब कर्पूरगौरम मंत्र का जाप करते है, क्यों करा जाता है कर्पूरगौरम मंत्र का जाप हर आरती में, क्या उद्देश्य है और क्या महत्व है इस मंत्र का।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
कर्पूरगौरं मंत्र का सम्बन्ध भगवन शिव से है, इसे शिवजी का मंत्र कहा जाता है और इस मंत्र में भगवन शिव के दिव्य रूप का वर्णन और स्तुति करी गयी है।
इस मंत्र के द्वारा हम भगवन शिव से प्राथना करते है के प्रभु हमारे मन से मृत्यु का भय दूर करे और हमारा जीवन सुखमये बनाये और आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे।
करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं ।
संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं ।
भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं ।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है ।
अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
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