वामन अवतार के तीन पग
एक पैर से सारी पृथ्वी ऊपर के सभी लोक व्याप्त कर लिये ।
उनका वह द्वितीय पग सत्यलोक में जाकर ठहरा था ।
अब, बाली के पास देने को कुछ नहीं था। लेकिन, एक यज्ञमान के रूप में बाध्य होने के कारण, उन्हें एक इच्छुक संरक्षक के रूप में कार्य करना पड़ा। जिस क्षण वामन जी ने अपना पैर उठाया, बाली ने उनके सामने साष्टांग प्रणाम किया और उनके सिर पर हाथ फेर दिया। और, वह नरक में था। लेकिन, वामन जी ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया- अब से तुम पाताल लोका (अधोलोक) के राजा बनोगे। आपका नाम बलिदान के साथ समरूप होगा!
परमेष्ठी ब्रह्माने अपने कमण्डलु के जल से भगवान्के उस चरण को पखारा । भगवान्के चरण पखार ने से जो चरणोद क तैयार हुआ, उसी से सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली तथा सबके लिये परम मंगलमयी श्री गंगाजी प्रकट हुईं , जिन्होंने अपने पावन जल से तीनों लोकों को पवित्र किया, सगर के सभी पुत्रों का उद्धार किया तथा जिन के जल से महाराज भगीरथ ने उस समय भगवान् शंकरका जटाजूट भर दिया था।
भगवान् विष्णुकी चरणधूलि से युक्त ' गंगा ' नामक तीर्थ सब तीर्थों में प्रधान है । इसे ब्रह्माजी ने प्रकट किया और राजा भगीरथ ने भूतल पर उतारा है ।
स्कन्दा पुराण
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