घोर कलियुग आने पर मनुष्य पुण्य कर्म से दूर रहेंगे , दुराचार में फँस जायेंगे और सब -के-सब सत्य-भाषण से मुँह फेर लेंगे, दूसरों की निन्दा में तत्पर होंगे । पराये धन को हड़प लेने की इच्छा करेंगे । उनका मन परायी स्त्रियों में आसक्त होगा तथा वे दूसरे प्राणियों की हिंसा किया करेंगे । मूढ़, नास्तिक और पशु बुद्धि रखने वाले होंगे , माता-पिता से द्वेष रखेंगे ।
अपने शरीर को ही आत्मा समझेंगे ।
ब्राह्मण लोभरूपी ग्राहके ग्रास बन जायँगे । वेद बेचकर जीविका चलायेंगे । धन का उपार्जन करने के लिये ही विद्या का अभ्यास करेंगे और मद से मोहित रहेंगे । अपनी जाति के कर्म छोड़ देंगे । प्रायः दूसरों को ठगेंगे , तीनों काल की संध्योपासना से दूर रहेंगे और ब्रह्मज्ञान से शून्य होंगे ।
समस्त क्षत्रिय भी स्वधर्म का त्याग करने वाले होंगे । कुसंगी , पापी और व्यभिचारी होंगे । उनमें शौर्य का अभाव होगा । वे कुत्सित चौर्य- कर्म से जीविका चलायेंगे , शूद्रों का - सा बर्ताव करेंगे और उनका चित्त काम का किंकर बना रहेगा ।
वैश्य संस्कार - भ्रष्ट , स्वधर्मत्यागी , कुमार्गी , धनोपार्जन - परायण तथा नाप - तौल में अपनी कुत्सित वृत्तिका परिचय देनेवाले होंगे ।
इसी तरह शूद्र ब्राह्मणों के आचार में तत्पर होंगे उनकी आकृति उज्ज्वल होगी अर्थात् वे अपना कर्म - धर्म छोड़कर उज्ज्वल वेश-भूषा से विभूषित हो व्यर्थ घूमेंगे । वे स्वभावत : ही अपने धर्म का त्याग करनेवाले होंगे । उनके विचार धर्म के प्रतिकूल होंगे । वे कुटिल और द्विजनिन्दक होंगे । यदि धनी हुए तो कुकर्म में लग जायेंगे । विद्वान् हुए तो वाद - विवाद करने वाले होंगे । अपने को कुलीन मानकर चारों वर्गों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करेंगे, समस्त वर्णोंको अपने सम्पर्क से भ्रष्ट करेंगे । वे लोग अपनी अधिकार-सीमा से बाहर जाकर द्विजोचित सत्कर्मों का अनुष्ठान करने वाले होंगे ।
कलियुग की स्त्रियाँ प्रायः सदाचार से भ्रष्ट और पति का अपमान करने वाली होंगी । सास ससुर से द्रोह करेंगी । किसी से भय नहीं मानेंगी । मलिन भोजन करेंगी । कुत्सित हाव-भाव में तत्पर होंगी । उनका शील - स्वभाव बहुत बुरा होगा और वे अपने पति की सेवा से सदा ही विमुख रहेंगी।
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