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कब से शुरू हैं नवरात्रि का पावन त्योहार, जानिये घटस्थापना का शुभ मुहूर्त और मान्यताएं

मान्यता है कि नवरात्रि पर देवी दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं, इस बार मलमास का महीना होने के कारण जिसे अधिकमास भी कहते हैं नवरात्रि एक महीने की देरी शुरू हो रहे हैं।नवरात्रि पर ही विवाह को छोड़कर सभी तरह के शुभ कार्यों की शुरुआत करना बेहद ही शुभ माना जाता है।

नवरात्रि घटस्थापना का महत्व:


घटस्थापना प्रतिपदा तिथि के पहले एक तिहाई हिस्से में कर लेनी चाहिए। इसे 'कलश स्थापना' भी कहते हैं। 

कलश को सुख- समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रुद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं तथा घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहती है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है जिसे कलश स्थापना भी कहते हैं।


घटस्थापना 2020 शुभ मुहूर्त:


17 अक्तूबर को सुबह 6 बजकर 10 मिनट से 10 बजकर 11 मिनट तक घट स्थापना किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त दिन के अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना सबसे बढ़िया और उत्तम समय माना जाता है। शनिवार के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से लेकर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में कलश स्थापना करके नवरात्रि का शुभारंभ कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि पर कलश स्थापना के लिए सभी 27 नक्षत्रों में से पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु शुभ होता है।


नवरात्रि पूजा सामग्री:

लाल चुनरी,सात तरह के अनाज,पवित्र मिट्टी, गंगाजल आम के पत्‍ते, लाल वस्त्र, मौली, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी/ तेल, लंबी बत्ती के लिए रुई या बत्ती, धूप, अगरबत्ती, माचिस, चौकी, चौकी के लिए लाल कपड़ा, जटा नारियल, दुर्गा सप्‍तशती किताब, साफ चावल, कुमकुम, फूल, फूलों का हार, चालीसा व आरती की किताब, देवी की प्रतिमा या फोटो, पान, सुपारी, लाल झंडा, लौंग, इलायची, बताशे या मिसरी, कपूर, उपले, फल-मिठाई, कलावा, मेवे की खरीदारी जरूर कर लें.


घटस्थापना विधि:


🙏🏻 सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए।


🙏🏻 नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।


🙏🏻 अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।


🌷 कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।


🙏🏻 नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।


जानें किस दिन कौन सी देवी की होगी पूजा:

  • 17 अक्टूबर- मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना

  • 18 अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजा

  • 19 अक्टूबर- मां चंद्रघंटा पूजा

  • 20 अक्टूबर- मां कुष्मांडा पूजा

  • 21 अक्टूबर- मां स्कंदमाता पूजा

  • 22 अक्टूबर- षष्ठी मां कात्यायनी पूजा

  • 23 अक्टूबर- मां कालरात्रि पूजा

  • 24 अक्टूबर- मां महागौरी दुर्गा पूजा

  • 25 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री पूजारी

 

संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है


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