भगवान के स्वरूप का ज्ञान न होने पर भी भगवान की सत्ता में जो विश्वास है,उससे भी ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है, किन्तु यह विश्वास पूर्ण रूप से होना चाहिए।मनुष्य के मन में ईश्वर के अस्तित्व का विश्वास ज्यों ज्यों बढ़ता जाता है,त्यों ही त्यों वह भगवान के समीप पंहुंचता जाता है।किसी को भगवान के सगुण निर्गुण ,साकार-निराकार किसी भी स्वरूप का वास्तविक अनु भव नहीं है,किन्तु यह विश्वास है कि भगवान हैं और सभी जगह व्यापक है,वे सर्वत्र है,वे पतित-पावन है और अंतरयामी है।
हम जो कुछ कर रहें है,उसे भगवान देख रहा है,जो कुछ बोल रहे है, उसे वे सुन रहें है और जो कुछ हमारे ह्दय में है,उसेभी वो जान रहें है।ऐसा विश्वास हो जाने पर उस साधक द्वारा झूठ कपट चोरी हिंसा आदि भगवान के विपरीत आचरण नहीं हो सकेंगे,
भगवान के अस्तित्वमें जो भक्तिपूर्वक विश्ववास है इसी का नाम श्रद्धा है
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
コメント