ईश्वर कृपा से सत्संग की प्राप्ति होती है। सत्संग से सांसारिक विषय नष्ट हो जातें हैं।
भगवान श्रीराम ने कहा-"बड़ेभाग पाइब सत्संगा,बिन ही प्रयास होंहीं भवभंगा।। अर्थात "भक्ति की प्राप्ति भी सत्संग से ही संभव है।
भक्ति तो समस्त सुखों को देने वाली है।
भगवान श्रीराम कहतें है-'भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी, बिनु सत्संग न पावहि प्राणी।।'पुण्य समूह के बिना सन्त नहीं मिलते बिना सन्त के सत्संग प्राप्त नहीं होता।बिना सत्संग के विवेक नहो होता। बिना विवेक के ज्ञान नहीं मिलता और बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं मिलती।सन्तों का संग मोक्ष दायक है।
गरुड़जी से काकभुशुण्डिजी कहतें है कि सत्संगति इस संसार में दुर्लभ है, संसार में पलभर की एक बार सत्संगति प्राप्त हो जाए तो यह मनुष्य जीवन धन्य हो जाय।
सत संगति दुर्लभ संसारा। निमिष दंड भरि एकउ बारा।।तुलसीदास जी कहतें है कि बिना सत्संग के श्रीराम के चरणों में अचल प्रेम नहीं हो सकता--बिनु सत्संग न हरिकथा, तेहि बिनु मोह न भाग।मोह गए बिनु रामपद,होइ न दृढ़ अनुराग।।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
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