संसार में जन्म तथा गुणों के कारण बहुत - से गुरु होते हैं । परंतु उन सबमें पुराणों का ज्ञाता विद्वान् ही परम गुरु माना गया है । पुराणवेत्ता पवित्र , दक्ष , शान्त , ईर्ष्या पर विजय पानेवाला , साधु और दयालु ह्येना चाहिये ।
ऐसा प्रवचन- कुशल विद्वान् इस पुण्यमयी कथा को कहे सूर्योदय से आरम्भ करके साढ़े तीन पहर तक उत्तम बुद्धिवाले। जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद कर लेता है किंतु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है ।
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