मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से जाॉना जाता है, पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत होता है। इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा 29 दिसंबर को है। कार्तिक पूर्णिमा की तरह मार्गशीर्ष पूर्णिमा का भी विशेष महत्व होता है। पूर्णिमासी का व्रत पूर्णिमा के दिन या पूर्णिमा के एक दिन पहले हो सकता है और यह पिछले दिन पूर्णिमा तिथि के शुरू होने के समय पर निर्भर करता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा मुहूर्त:
मार्गशीर्ष, शुक्ल पूर्णिमा
प्रारम्भ – 07:54, दिसम्बर 29
समाप्त – 08:57, दिसम्बर 30
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत विधि:
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर आपका प्रयास यह होना चाहिए कि किसी तीर्थ स्थली पर जाकर नहाया जाए. अगर यह नहीं हो पाए तो आपको सूर्योदय से पहले उठकर गंगाजल का इस्तेमाल कर पानी से स्नान करना चाहिए.
स्नान के बाद आपको व्रत का संकल्प लेना होगा और पूरे दिन इसे निष्ठा के साथ निभाना चाहिए.
इस दिन आपको वस्त्रों और खाने पीने की चीजों का दान करना चाहिए.
इस दिन झूठ बोलने से बचना चाहिए साथ ही दिन में सोने से भी परहेज करना चाहिए.
गरीबों और ब्राम्हणों को भोजन करवाएं.
प्याज, लहसुन या किसी भी प्रकार के मादक पदार्थ के सेवन से बचना चाहिए.
इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करें.
ये सब करने से भक्तों को मानसिक शांति मिलती है और कष्टों का निवारण होता है.
इस पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहते हैं। दरअसल मान्यता है कि इस दिन आप जो भी दान करते हैं उसका फल अन्य पूर्णिमा की अपेक्षा 32 गुना अधिक प्राप्त होता है। इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा कहा जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत और पूजा करने से भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा वह दिन था जब भगवान दत्तात्रेय अस्तित्व में आए। माना जाता है कि तीन मुखों वाले भगवान भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा की संयुक्त शक्तियां हैं। वह दिन भी था जब देवी पार्वती के अन्नपूर्णा रूप ने जन्म लिया था। माँ अन्नपूर्णा को अन्न की देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। इसलिए, मार्गशीर्ष पूर्णिमा तीथ पर भक्त अन्नपूर्णा जयंती मनाते हैं।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है
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