गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहतें है में सम्पूर्ण प्राणियों में समान हूँ। उन प्राणियों में न तो मेरा कोई द्वेषी है और न कोई प्रिय है।परंतु जो प्रेमपूर्वक मेरा भजन करतें है वे मुझमें है और में भी उनमें हूँ। भगवान सबमें समान है,पर भक्त उन में पक्षपात पैदा कर देतें है।
कोई भगवान से विरुद्ध से विरुद्ध चले तो भी भगवान का उनसे द्वेष नहीं है।जैसे एक माँ का अपने बच्चे से द्वेष नहीं होता। माँ की मार में भी माँ की कृपा ही होती है।।
इसलिये सदैव नवकर ही चलें। यह कभी ना कहें कि हम ही सही है और हमारी बात ही सब को माननी चाहिए। यह भी नहीं समझें कि हम ही सबसे श्रेष्ठ निर्दोष और बुद्धिमान है। दूसरे लोग भी अपने दृष्टिकोण के अनुसार सही हो सकते है |
और हो सकता है जिन परिस्थितियों में वे रहे है उनमें उनके लिए वैसा ही सोचना, बनना, करना भी स्वाभाविक हो। इसलिए दूसरों को समझने की कोशिश करें। उनके दृष्टि कोण की, उनकी परिस्थितियों की भिन्नता को स्वीकार करें।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है, कृप्या अपने प्रश्न साझा करे, हम सदैव तत्पर रहते है आपके प्रश्नो के उत्तर देने के लिया, शास्त्री जी से प्रश्न पूछने के लिया हमे ईमेल करे sanskar@hindusanskar.org संस्कार और आप, जीवन शैली है अच्छे समाज की, धन्यवाद्
ความคิดเห็น