इन बातों का ध्यान रखना है जरूरी - गणेश जी को विराजमान करने के लिए पूर्व :
एक ही घर में गणेशजी की तीन मूर्ति दिशा और उत्तर ईशान शुभ माना गया है , एकसाथ नहीं रखें ।
वास्तु विज्ञान के अनुसार लेकिन भूलकर भी इन्हें दक्षिण और दक्षिण इससे ऊर्जा का आपस में टकराव होता है , पश्चिम कोण यानी नैऋत्य में नहीं रखें । जो अशुभ फल देता है ।
भगवान गणेश के मुख की तरफ समृद्धि , सिद्धि , सुख और सौभाग्य होता है । स्थापना के समय ये ध्यान रखें कि मूर्ति का मुख दरवाजे की तरफ नहीं सोना चाहिए
मुहूर्त गणेश पूजा का समय:
सुबह 11.20 बजे से दोपहर 01.20 बजे तक का समय सबसे अच्छा रहेगा, क्योंकि इस वक्त मध्याह्न काल रहेगा, जिसमें गणेश जी का जन्म हुआ था।
शुभ योग - 31 अगस्त, 2022 - 05:58 पूर्वाह्न से 09:00 पूर्वाह्न,
शुभ चौघड़िया - 31 अगस्त, 2022 - 10:45 पूर्वाह्न - 12:15 अपराह्न,
शाम शुभ समय - 31 अगस्त, 2022 - 03:30 अपराह्न - 06:30 PM
चतुर्थी तिथि 30 अगस्त, 2022 - 03:35 अपराह्न, चतुर्थी तिथि समाप्त 31 अगस्त, 2022 - 03:25 अपराह्न,
इस समय चंद्र दर्शन न करे:
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को लोगों को चंद्र दर्शन से बचना चाहिए क्योंकि यह अशुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने से व्यक्ति मिथ्या दोष से पीड़ित हो सकता है इसलिए चतुर्थी तिथि को चंद्रमा को नहीं देखने की सलाह दी जाती है।
गणेश विसर्जन मुहूर्त मंगलवार 09 सितंबर 2022
गणेश विसर्जन (अनंत चतुर्दशी) 09 सितंबर, 2022
गणेश चतुर्थी पूजा सामग्री:
पान, सुपारी, लड्डू, सिंदूर, दूर्वा
गणेश चतुर्थी पूजा विधि:
भगवान की पूजा करें और लाल वस्त्र चौकी पर बिछाकर स्थान दें। इसके साथ ही एक कलश में जल भरकर उसके ऊपर नारियल रखकर चौकी के पास रख दें। दोनों समय गणपति की आरती, चालीसा का पाठ करें। प्रसाद में लड्डू का वितरण करें।
गणेश चतुर्थी मंत्र:
ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करें। प्रसाद के रूप में मोदक और लड्डू वितरित करें।
गणेश प्रतिमा में देखने योग्य 6 बातें :
स्थापना के लिए मिट्टी के गणेशजी की मूर्ति घर लानी चाहिए या मिट्टी से खुद बनानी चाहिए । प्लास्टर ऑफ पेरिस या अन्य केमिकल्स के उपयोग से बनी मूर्तियों की पूजा नहीं करनी चाहिए ।
बैठे हुए गणेशजी की प्रतिमा लेना शुभ माना गया है । ऐसी मूर्ति की पूजा करने से स्थायी धन लाभ होता है। गणेशजी को वक्रतुंड कहा जाता है । इसलिए उनकी सूंड बांयीं या दायीं ओर मुड़ी हुई होनी चाहिए । मोक्ष प्राप्ति के लिए वामावर्त ( बांयीं ओर मुड़ी हुई ) सूंड वाली लौकिक भौतिक सुख की कामना हेतु दक्षिणावर्त ( दायीं ओर मुड़ी हुई ) सूंड वाली भगवान गणेशजी की प्रतिमा घर में स्थापित करना चाहिए ।
जिस मूर्ति में गणेशजी के कंधे पर जनेऊ न हो , ऐसे मूर्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए ।
गणेशजी को भालचंद्र भी कहते हैं इसलिए उनकी ऐसी मूर्ति की पूजा करनी चाहिए जिनके भाल यानी ललाट पर चंद्रमा बना हुआ हो ।
गणेशजी की ऐसी मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए जिसमें उनके हाथों में पाश और अंकुश दोनों हों । शास्त्रों में ऐसे ही रूप का वर्णन मिलता है ।
इस समयावधि में श्री गणेश प्राकट्य काल, मध्यान्ह, अभिजीत काल, चंचल का चौघड़िया, वृश्चिक स्थिर लग्न रहेगा, जो चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति में सहायक होगा।
संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है
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