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देवशयनी एकादशी 1 july 2020, सभी प्रकार के पापों और परेशानियों का नाश होता है

देवशयनी एकादशी (1 जुलाई 2020) के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाएंगे। अगले चार महीने तक शुभ कार्य वर्जित हो जाएंगे। इसे चातुर्मास कहते हैं। भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन निद्रा से जागते हैं।


देवशयनी एकादशी को पद्मनाभा भी कहा जाता है. चार्तुमास आरंभ होते हैं भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं. भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं. इसीलिए चार्तुमास में भगवान शिव की उपासना को विशेष महत्च दिया गया है. सवान का महीना भी चार्तुमास में ही आता है

भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसे हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। आषाढ़ के महीने में दो एकादशी आती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। भगवान विष्णु ही प्रकृति के पालनहार हैं और उनकी कृपा से ही सृष्टि चल रही है। इसलिए जब श्रीहरि चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं तो उस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। इसी समय से चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है। इस समय कोई मांगलिक या भौतिक कार्य तो नहीं होता, लेकिन तपस्या होती है। इसलिए इसे चातुर्मास भी कहा जाता है। इसे बहुत ही शुभ महीना माना जाता है।


देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि देवशयन हो गया है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते। चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।

देवशयनी एकादशी से साधुओं का भ्रमण भी बंद हो जाता है। वह एक जगह पर रुक कर प्रभु की साधना करते हैं। चातुर्मास के दौरान सभी धाम ब्रज में आ जाते हैं। इसलिए इस दौरान ब्रज की यात्रा बहुत शुभकारी होती है। अगर कोई व्यक्ति ब्रज की यात्रा करना चाहे तो इस दौरान कर सकता है।


एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है. द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है.


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