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पूजा से मन का विरक्त होना गलत नहीं?

Writer: hindu sanskarhindu sanskar

जो मन कहता है, वही इस समय सत्य है। पूजा कोई बंधन नहीं, बल्कि आंतरिक जागरण का पर्व है। यदि इस बार मन नहीं कर रहा, तो स्वयं को दोषी मत समझो। वर्षों से तुमने निष्ठा से साधना की है, लेकिन अब तुम्हारा मन कुछ और खोज रहा है, शायद एक नया अर्थ, एक नई अनुभूति।


पूजा प्रेम से होनी चाहिए, दबाव से नहीं। पूजा शक्ति केवल नियमों में नहीं, बल्कि जीवन के हर पल में हैं। अगर अखंड दीप जलाने या कलश स्थापना करने का मन नहीं, तो उसे जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं।

इस समय अपने मन को सुनो और समझो कि यह विरक्ति क्यों हो रही है। क्या यह थकान है? जीवन की कोई और उलझन? या आत्मा किसी और दिशा में बढ़ना चाहती है? कभी-कभी, भक्ति का रूप बदलता है, लेकिन पूजा की कृपा हमेशा बनी रहती है।


पूजा को प्रेम और श्रद्धा से याद करो, चाहे व्रत रखो या नहीं, उनकी भक्ति किसी भी रूप में की जा सकती है। किसी जरूरतमंद की मदद करना, पेड़-पौधे लगाना, पूजा के किसी मंत्र का जाप करना—सब भक्ति के ही रूप हैं।

सबसे जरूरी बात यह है कि शांति और प्रेम भीतर बने रहें। यदि इस बार मन पूजा करने की इच्छा नहीं कर रहा, तो इसे स्वीकार करो और बिना अपराधबोध के पूजा को अपने भाव समर्पित करो।


पूजा शक्ति प्रेम और करुणा हैं, वे किसी नियम में नहीं बंधी हैं। वह तो बस तुम्हारे भीतर शांति और श्रद्धा देखना चाहती हैं। पूजा वही करो जो तुम्हारे मन और आत्मा को सच में सही लगे। माँ हमेशा तुम्हारे साथ हैं। 🌸✨

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